महोबा /उत्तर प्रदेश :आपने “अंधेर नगरी वाली कहावत तो सुनी होगी, कुछ ऐसा ही हाल इन दिनों महोबा जिले में किसानों के साथ मूंगफली खरीद पर देखने को मिल रहा है। सरकार द्वारा पीएसएफ और पीसीयू जैसी दो संस्थाओं के माध्यम से मूंगफली खरीद के लिए 6 केन्द्र निर्धारित किए है। जिन पर मूंगफली को एमएसपी के तहत खरीदा जाना था। लेकिन जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत है। जहां पर किसानों की लंबी-लंबी कतार लगी है ताकि सरकारी खरीद में उन्हें दो पैसे का मुनाफा हो सके, पर सबसे हैरान कर देने वाली बात यह है कि जिले के बहुउद्देशीय प्राथमिक ग्रामीण सहकारी समिति अकौना में कागजों में खोला गया खरीद केंद्र का आज तक ताला नहीं खुल सका। ताला न खुलने की वजह सुनकर आप दंग रह जाएंगे। केंद्र प्रभारी कि माने तो उसके पास मूंगफली खरीद के लिए बारदाना नहीं है। मूंगफली खरीद तो लें लेकिन उसे रखते कहां । बारदाने के इस पेंच में किसानों ने अकौना समिति के तंत्र के आमने घुटने टेक दिए और व्यापारियों को औने पौने दाम पर उपज बेचने के लिए मजबूर हो गए।सरकारी तंत्र की इस ताले चाबी की रस्साकसी के बीच किसानों का बड़ा नुकसान हो रहा है।बारदाने के बहाने खरीद केंद्र पर 14 दिन से लटका ताला किसी तानाशाही की गवाही दे रहा हैं। किसान सर्द रातों में घर छोड़कर समितियों के बाहर डेरा डालकर अपनी मूंगफली की उपज के उचित मूल्य की जद्दोजहद में लगे हुए है। वही आए दिन खरीद केंद्रों में धांधली के चलते किसान बेहद परेशान हैं। दरअसल कुलपहाड़ तहसील के अकौना बहुउद्देशीय प्राथमिक ग्रामीण सहकारी समिति का यह मामला है । जहां शासन द्वारा खोले गए केंद्र में मूंगफली की खरीद की जानी थी लेकिन इस केंद्र पर अब तक एक दाना भी मूंगफली नहीं खरीदी गई जिससे किसान बेहद परेशान है। किसानों ने बताया कि इस केंद्र से जुड़े हुए लगभग 100 गांव आते हैं जो अपनी मूंगफली की फसल को सरकारी दरों पर विक्रय करना चाहते हैं लेकिन दुर्भाग्य की आज तक यह केंद्र नहीं खुला जिसकी वजह से हम अपनी मूंगफली नहीं बेंच पा रहे और हमें सस्ते दामों पर व्यापारियों को ही अपनी मूंगफली बेचनी पड़ रही है।अकौना समिति में एक दिसंबर से कागजों में मूंगफली खरीद शुरू है। केंद्र प्रभारी ने भी पत्र उच्च अधिकारियों भेज कर अपना पल्ला झाड़ लिया है कि उनके पास मूंगफली खरीद के बारदाना नहीं है। यह पत्र जब हमारे हाथ लगा तो उसमें दिनांक भी नहीं डाली गई की कि बारदाना की मांग कब की गई है। सरकारी तंत्र की लचर कार्य प्रणाली इतना बताने के लिए काफी है कि जिम्मेदार कितने लापरवाह है। महोबा के अधिकारी किसानों के प्रति कितने संवेदनशील यह बताने के लिए ये लापरवाही ही काफी है। 14 दिन बीत जाने के बाद भी आज तक अकौना केंद्र में बारदाना नहीं पहुंचा और जिसके ताले की चाबी किस जगह फंसी है इससे किसान हैरान है । वहीं कुछ किसानों ने कहा कि केंद्र न खोलने की वजह से उन्हें दूसरे खरीद केंद्रों पर जाना पड़ता है जहां ट्रैक्टरों की लम्बी लाइन लगी हुई है। जहां उनका नंबर नहीं आता लेकिन वहीं व्यापारी अपना माल आसानी से बेच जाते हैं। यही वजह है कि वह थकहार कर अपनी उपज बाजार में विक्रय कर रहे हैं जो सरकारी दरों से बहुत कम है।
जिस देश को किसानों का देश कहा जाता है उसके साथ छल किए जाने के तरह-तरह के मामले सामने आ रहे हैं । किसान सड़कों पर कभी खाद के लिए खड़ा है तो कभी अपनी उपज का सही मूल प्राप्त करने के लिए खड़ा है। वही जिम्मेदार कागजों पर सिर्फ यह बात कर अपना काम बंद कर देते हैं कि उनके केंद्र पर बारदाना नहीं है ।
किसानों के साथ हो रहे छल का जिम्मेदार कौन है ?
ऐसे अधिकारियों पर क्या करवाई होगी और किसानों को उसकी मेहनत का उचित मूल्य कैसे मिलेगा? क्या किसान सड़कों पर ही खाद, बीज और पानी के लिए संघर्ष करता रहेगा या फिर राजनीति का एक मोहरा बनकर रह जायेगा।