रायपुर:भगवान जगन्नाथ आस्था व श्रद्धा के प्रतीक
भगवान जगन्नाथ को ब्रह्मांड का भगवान माना जाता है. उनका नाम जगत का स्वामी है.
जगन्नाथ मंदिर, भारत के चार धामों का हिस्सा हैमान्यता है कि जो कोई भक्त सच्चे मन और श्रद्धा से इस यात्रा में शामिल होते हैं, उन्हें मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है.
- जगन्नाथ मंदिर, भारत के चार धामों का हिस्सा है.
- मान्यता है कि हर हिंदू को अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार जगन्नाथ मंदिर के दर्शन करने चाहिए.
पौराणिक धर्मग्रंथों की परंपरा के अनुसार आम इंसानों की तरह भगवान जगन्नाथ के भी बीमार होने की परंपरा का पालन मंदिरों में किया जाता है। भगवान को स्वस्थ करने के लिए औषधियुक्त काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जाती है। भगवान स्वस्थ होने के पश्चात अपनी प्रजा से मिलने रथ पर अपने भैया बलदाऊ और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण पर निकलते हैं। चार धामों में से एक जगन्नाथ पुरी में यह परंपरा सदियों से निभाई जा रही है। पुरी धाम की परंपरा का अनुसरण राजधानी रायपुर के 10 से अधिक जगन्नाथ मंदिरों में भी किया जाता है।इसमें से दो ऐतिहासिक जगन्नाथ मंदिर हैं, जिनका निर्माण 200 से लेकर 500 साल पहले किया गया था। तीसरा मंदिर 22 साल पहले बना था, लेकिन इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं, कारण कि यहां निभाई जाने वाली परंपरा में प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल शामिल होते हैं। रथयात्रा रवाना करने से पहले स्वर्ण से निर्मित झाड़ू से बुहारने की रस्म निभाई जाती है। इसलिए, यह मंदिर खास है। ऐसी ही रोचक जानकारी दे रहे हैं
छत्तीसगढ़ के बार्डर से ओडिशा की सीमा प्रारंभ होती है। दोनों राज्याें के अनेक पर्व, त्यौहारों में काफी समानता है। ओडिशा से लाखों लोग छत्तीसगढ़ में आकर बस चुके हैं, ओड़िसा में मनाए जाने वाले अनेक त्यौहार यहां धूमधाम से मनाए जाते हैं। इनमें से एक रथयात्रा पर्व भी है। जिस दिन पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा निकाली जाती है, उसी दिन राजधानी में भी लगभग 10 मंदिरों से रथयात्रा निकलती है। भगवान स्वयं मंदिर से बाहर आकर अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। रथ को खींचने श्रद्धालुओं मेें होड़ सी लगी रहती है, श्रद्धालु एक बार रथ और रथ की रस्सी को छूकर अपने आपको धन्य समझते हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के दौरान गायत्री नगर में जगन्नाथ मंदिर की आधारशिला रखी गई थी। 2003 में मंदिर का निर्माण पूरा। रथयात्रा से पूर्व राज्यपाल, मुख्यमंत्री पूजा करके प्रतिमाओं को सिर पर विराजित करके रथ तक लेकर आते हैं। यात्रा से पूर्व रथ के आगे स्वर्ण से निर्मित झाड़ू से मार्ग को बुहारने की रस्म निभाई जाती है। इसे छेरा-पहरा यानी रथ के आगे सोने से बनी झाड़ू से बुहारने की रस्म कहा जाता है।
श्री जगन्नाथ मंदिर के संस्थापक पुरंदर मिश्रा बताते हैं कि पुरी धाम में जिस तरह तीन रथों पर भगवान जगन्नाथ, भैया बलदाऊ और बहन सुभद्रा को विराजित किया जाता है, उसी तर्ज पर गायत्री नगर स्थित मंदिर में भी तीन रथ पर भाई-बहन को विराजित करके यात्रा निकाली जाती है।भ गवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदी घोष’, भैया बलदाऊ के रथ को ‘तालध्वज’ और बहन सुभद्रा के रथ को ‘देवदलन’ कहा जाता है। सबसे आगे बलदाऊ का रथ, मध्य में सुभद्रा का और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है।