राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा दुनियाभर में सुर्खियां बनीं। 500 साल पुराना इतिहास बदला गया। PM मोदी खुद यहां रोड-शो करने आए। योगी ने 5 जनसभाएं कीं। मगर सियासी जादू नहीं चला। जनता की नाराजगी अंदर ही अंदर मुखर हो रही थी। भाजपा के स्थानीय नेताओं से लेकर आलाकमान तक उस तासीर को भांप नहीं पाए। मोदी को यहां के भाजपा नेता गुड मैनेजमेंट दिखाते रहे। मगर अंदरखाने कुछ और ही चल रहा था। विरोध की यह चिंगारी कैंडिडेट के फाइनल होते ही शुरू हो गई थी। हनुमानगढ़ी जाने वाली सड़क के मार्केट में हमारी मुलाकात रणंजय शास्त्री से हुई। वह अयोध्या के ही रहने वाले हैं। भाजपा को वोट क्यों नहीं पड़ा? इस पर कहते हैं- लोग मोदी-योगी को पसंद करते हैं। राममंदिर से खुश हैं। मगर सांसद लल्लू सिंह से नाराज हैं। आप ऐसे समझिए कि जो 4.99 लाख वोट भाजपा को मिले हैं वे PM मोदी को मिले हैं, लल्लू सिंह को नहीं। वह इतने पर ही नहीं रुकते। कहते हैं, अयोध्या में 2 साल से लोग परेशान हैं। VIP तो आते हैं, मगर जो सड़कें बंद होती हैं, उनमें हम लोग फंसते हैं। लोग घरों में कैद हो जाते हैं। हमारे रिश्तेदार शहर के बॉर्डर पर फंस जाते हैं। अंदर नहीं आने दिया जाता। लोग परेशान हो गए थे, यही वजह है कि लोगों ने सपा को जिता दिया। कुछ दूरी पर खड़े लोगो ने कहा की बाबाजी का बुलडोजर पूरे UP में जिता रहा होगा, मगर अयोध्या में ये भी हार का बड़ा कारण रहा है। इतने मकान-दुकानें तोड़ दीं। लोग क्या खुश होंगे? फिर पेपर लीक होने से लड़के लडकियां खफा थे। जिन्होंने सोचा कि सरकारी नौकरी मिलेगी, उन्हें बहुत निराशा हुई। यहां कानून व्यवस्था नहीं, सिर्फ मास्टर लॉ चलाया जा रहा है। लोगों की रोजी-रोटी चली गई। सांसद किसी के सुख-दुख में शामिल नहीं हुए। किसी को मदद नहीं मिली। VIP मूवमेंट की आड़ में अगर किसी का ठेला हटा दिया गया तो उसको दुकान भी नहीं लगाने दी जा रही है। उसकी समस्या सुनने वाला कोई नहीं। राम मंदिर तो सबका है। सबकी आस्था है, फिर गरीब आदमी क्यों परेशान है ? यही वजह है कि चुनाव में नतीजे भाजपा के फेवर में नहीं आए। वही लोगों को लगता है कि अयोध्या के लोगों ने अपनी ही पार्टी को हरा दिया। मगर असलियत कोई नहीं जानता है। जब भाजपा को जिताना था, हमने जिताया। मगर ऐसा कब तक चलेगा। मिल्कीपुर के विधायक अवधेश प्रसाद भले ही सपा के हैं। मगर पूरे अयोध्या के लोगों की सुनते हैं। सुख-दुख में खड़े होते हैं। भाजपा के पदाधिकारियों से तो लोग मिल भी नहीं सकते हैं।