Monday, December 23, 2024
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हादसे के बाद महोबा जिल अस्पताल की फायर सेफ्टी व्यवस्था सवालों के घेरे में, फायर सेफ्टी पाइपलाइन का कार्य भी है अधूरा, अग्निशमन यंत्रों में एक्सपायरी डेट का भी नहीं उल्लेख, वार्डों में नहीं है इमरजेंसी डोर

उत्तर प्रदेश /झांसी : बुंदेलखंड के झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के एनआईसीयू वॉर्ड में हुए दर्दनाक हादसे में 10 नवजात शिशुओं की मौत ने पूरे देश को झकझोर दिया है। इस घटना के बाद सरकारी अस्पतालों की फायर सेफ्टी व्यवस्थाओं पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। ऐसे में महोबा जिला अस्पताल का रियलिटी चेक किया गया तो फायर सेफ्टी व्यवस्थाओं में कई चौंकाने वाली खामियां सामने आईं। अस्पताल के किसी भी वार्ड में आपातकालीन दरवाज़ा ,खिड़की ने होने की स्थिति में भर्ती मरीजों को कैसे बाहर निकाला जाएगा यहीं नहीं वार्ड में लगे फायर सेफ्टी सिस्टम का कार्य भी अधूरा पड़ा हुआ है देखिए एक रिपोर्ट….

आपको बता दें कि महोबा जिला अस्पताल 70 बेड का अस्पताल है। जहां हजारों की संख्या में मरीज और उनके तीमारदार अपना इलाज कराने के लिए आते हैं लेकिन जिस तरीके से अस्पताल में फायर सेफ्टी सिस्टम की व्यवस्था की गई है वह हैरान कर देने वाली है । महोबा जिला अस्पताल में किसी भी वार्ड में आपातकालीन खिड़की नहीं है, जिससे आपात स्थिति में मरीजों को सुरक्षित बाहर निकालना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। वहीं अस्पताल में आग बुझाने के लिए लगाए गए फायर सेफ्टी पाइपलाइन सिस्टम का काम अभी भी अधूरा पड़ा है। अस्पताल की सुरंगनुमा संरचना में अग्निशमन यंत्र तो लगे हुए हैं, लेकिन फायर सेफ्टी की दृष्टि से इसे अधूरा और असुरक्षित माना जा सकता है। इस मामले को लेकर जब हमने प्रभारी सीएमएस डॉक्टर राजेश भट्ट से बात की तो उन्होंने बताया कि यहां रोजाना ओपीडी में 700 से 1000 मरीज इलाज कराने आते हैं, और इमरजेंसी में 100 से 150 मरीजों की भीड़ रहती है। लेकिन जब उनसे आपातकालीन स्थिति के बारे में चर्चा की गई तो वह भी सकते में आ गए। उन्होंने कहा कि फायर सेफ्टी मानक के अनुसार सभी जगह दोनों टाइप के एबीसी और कार्बन डाइऑक्साइड के सिलेंडर लगे हुए है और फायर सेफ्टी पाइपलाइन का कार्य भी प्रोग्रेस में है। पूरे जिला अस्पताल में 140 सिलेंडर लगे हुए है मगर जब उनसे आपातकालीन निकास के बारे में पूछा गया तो वो गोलमोल जवाब देते नजर आए। उन्होंने कहा कि
जहां इमरजेंसी डोर है वहां लोगो को समझा दिया गया है और बाकी निरीक्षण कर कमियों को दूर कर रहे है। अग्निशमन सुरक्षा को लेकर मॉकड्रिल पर उन्होंने ज़बाब दिया कि ये काम फायर बिग्रेड विभाग का है बीते तीन माह पूर्व उनके द्वारा जिला अस्पताल में मॉकड्रिल किया गया था। अग्निशमन यंत्रों में एक्सपायरी डेट न लिखे होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि सभी पर लिखा गया है जिसमें नहीं लिखा उसे रिफिल कर लिखाया जायेगा।जिला अस्पताल के रियल्टी चेक में दिखी यह तस्वीर डराने वाली है। झांसी मेडिकल कॉलेज में घटित घटना के बाद से महोबा जिला अस्पताल की लापरवाही बड़े हादसे का कारण बन सकती है। अस्पताल के किसी भी वार्ड मे आपातकालीन दरवाज़ा न होना एक बड़ी लापरवाही है। यहीं नहीं वार्ड में जो अग्निशमन यंत्र लगे है उनकी एक्सपायरी डेट उसमें उल्लेख नहीं है। वहीं वार्ड में लगाया गया फायर सेफ्टी पाइपलाइन का कार्य भी अधूरा है जिससे अंदाजा लगाना काफी है कि जिला अस्पताल आपातकालीन अग्निकांडों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है। महोबा जिला अस्पताल में फायर सेफ्टी में कमी, मरीजों की जान के लिए एक बड़ा खतरा बन सकती है। जब इस बाबत हमने मरीजों से बात की तो वह भी झांसी के घटना क्रम के बाद से भयभीत है। कबरई के क़िदवई नगर निवासी शंकर कुशवाहा ने बताया कि बहुत ही असहज महसूस कर रहा हूं। उसके माता-पिता अस्पताल में भर्ती हैं। उसने बताया कि अस्पताल में कई फायर सिलेंडर एक्सपायर हो चुके हैं और फायर पाइपलाइन भी चालू नहीं है। उन्होंने चिंता जताई कि अगर यहां कोई हादसा होता है, तो सभी मरीज और उनके तीमारदार खतरे में होंगे। इसके अलावा शंकर ने बताया कि वह गरीब किसान है पिता के इलाज के लिए डॉक्टरों द्वारा बाहर की महंगी दवाइयां लिखी गई । शासन के निर्देश के बावजूद भी उसे महंगे इंजेक्शन लिखे गए लेकिन पिता की जान बचाने के लिए वह 500 रूपये कीमत का इंजेक्शन लेकर आया है। उसने अस्पताल में मिलने वाली निशुल्क दवाइयों की व्यवस्थाओं की पोल खोल कर रखती है।अस्पताल में एक अन्य तीमारदार प्रीति ने बताया कि भले ही आग बुझाने की पाइपलाइन और सिलेंडर लगे हों, लेकिन वे काम करने की स्थिति में नहीं हैं। अस्पताल में आपातकालीन निकासी के पर्याप्त इंतजाम भी नहीं हैं, जिससे संकट की स्थिति में मरीजों को सुरक्षित बाहर निकालना लगभग असंभव होगा। प्रीति ने बताया कि कई मरीज ऐसे होते हैं जो चलने में सक्षम होते है, ऐसे में मौजूदा व्यवस्थाएं अपर्याप्त लगती हैं।झांसी की घटना और महोबा अस्पताल में पाई गई खामियों के बाद, यह जरूरी हो गया है कि सरकारी अस्पतालों में फायर सेफ्टी के इंतजाम को सख्त और चाक-चौबंद किया जाए ताकि भविष्य में किसी भी हादसे से मरीजों की जान की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

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